टी.वी.से अखबार तक गर सेक्स की बौछार हो,फिर बताओ कैसे अपनी सोंच का विस्तार हो-अदम

गोण्डा - पूरा जीवन भक्कड़ी मिजाज में बिताने वाले स्व.रामनाथ सिंह अदम गोण्डवी जिनकी एक एक पंक्तियों में बड़ा सन्देश छुपा है और आज उन्हीं पंक्तियों में कई विश्वविद्यालयों में शोध किया जा रहा है। जीवन पर्यन्त सामंतवाद के खिलाफ लड़ने वाले गरीबों, दलितों शोषितों की आवाज बनकर उनके लिये साहित्य के माध्यम से संघर्ष करने वाले अदम गोंडवी की आज पुण्यतिथि है। आज पूरा देश उन्हें स्मरण कर रहा है नमन कर रहा है।

माँ वाराही न्यूज भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित कर उनकी कुछ महत्वपूर्ण पंक्तियां पेश रहा है।

ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी ।
फिर कहाँ से बीच में मस्जिद औ' मंदर आ गए ।

जिनके चेह्रे पर लिखी थी जेल की ऊँची फ़सील,
रामनामी ओढ़कर संसद के अन्दर आ गए ।

देखना, सुनना व सच कहना इन्हें भाता नहीं,
कुर्सियों पर अब वही बापू के बंदर आ गए ।

कल तलक जो हाशिए पर भी न आते थे नज़र,
आजकल बाज़ार में उनके कलेण्डर आ गए ।
टी०वी० से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो ।
फिर बताओ कैसे अपनी सोच का विस्तार हो ।

बह गए कितने सिकन्दर वक़्त के सैलाब में,
अक़्ल इस कच्चे घड़े से कैसे दरिया पार हो ।

सभ्यता ने मौत से डर कर उठाए हैं क़दम,
ताज की कारीगरी या चीन की दीवार हो ।

मेरी ख़ुद्दारी ने अपना सर झुकाया दो जगह,
वो कोई मज़लूम हो या साहिबे-किरदार हो ।

एक सपना है जिसे साकार करना है तुम्हें,
झोपड़ी से राजपथ का रास्ता हमवार हो ।
अदम' सुकून में जब कायनात होती है ।
कभी-कभार मेरी उससे बात होती है ।

कहीं हो ज़िक्र अक़ीदत से सर झुका देना,
बड़ी अज़ीम ये औरत की ज़ात होती है ।

उफ़ुक पे खींच दे पर्दा, चराग़ जल जाए,
हम अगर सोच लें तो दिन में रात होती है ।

नवीन जंग छिड़ी है इधर विचारों में,
रोज़ इस मोर्चे पर शह व मात होती है ।

समझ के तन्हा न इस शख़्स को दावत देना,
'अदम' के साथ ग़मों की बरात होती है।
जिस्म क्या है, रुह तक सब कुछ खुलासा देखिए ।
आप भी इस भीड़ में घुसकर तमाशा देखिए ।

जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिज़ाज,
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिए ।

जल रहा है देश, यह बहला रही है क़ौम को,
किस तरह अश्लील है संसद की भाषा देखिए

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