गोण्डा - पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर लोकतांत्रिक जनतंत्र में सैद्धान्तिक राजनीति के अंतिम प्रतीक थे चंद्रशेखर। साहस, शौर्य व संवेदना के प्रतीक सहज व विलक्षण प्रतिभा के धनी चंद्रशेखर जी की आज 94वी जयंती पर भारतीय राष्ट्रीय क्षत्रिय कल्याण परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अवधेश सिंह ने चित्र पर माल्यार्पण कर बृक्षारोपण कर उपवास रखकर कुलदेवी की आराधना कर विश्व मे फैली वैश्विक महामारी "कॅरोना वायरस" से निजात हेतु प्रार्थना कर जन्मजयंती मनाया।
अवधेश सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी गाव के ठाकुर सदानंद सिंह के पुत्र के रूप में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर गाव में ही प्राइमरी शिक्षा ग्रहण कर अंतिम शिक्षा इलाहावाद विश्वविद्यालय से एम ए राजनीति शास्त्र से उत्तीर्ण कर शोधकार्य (पीएचडी) प्रारम्भ ही किया था उसी दौरान आचार्य नरेन्द्रदेव जी के कहने पर बलिया जिले के शोसलिस्ट पार्टी के मंत्री बनकर राजनैतिक यात्रा शुरू कर दी। शोसलिस्ट पार्टी के प्रदेश के महामंत्री बने। 1962 में राज्यसभा के लिये चुने गए।
26 जून 1975 को आपातकाल लागू होने पर जयप्रकाश नारायन जी की गिरफ्तारी को लेकर इंदिरा जी से मतभेद होने पर गिरफ्तारी का विरोध करने की वजह से काग्रेस का सदस्य व राज्यसभा सदस्य होने पर भी इनकी गितफ्तारी हुई। 19 महीने जेल में रहे। जनता पार्टी बनी जिसके ये राष्ट्रीय बने।
जनता पार्टी टूटी। जनता पार्टी की सरकार गिरी।
मुझे इनपर ये पंक्तियां याद आती हैं कि-
है वही सूरमा इस युग मे,जो अपनी राह बनाता है।
कोई चलता पदचिन्हों पर, कोई पदचिह्न बनाता है।
चंद्रशेखर ने देश की अवाम से सीधे रिश्ते कायम करने हेतु कन्याकुमारी से 10 जनवरी 1983 से पदयात्रा शुरू कर 4260 किलोमीटर की भारत यात्रा 25 जून 1983 को पूरी की।
10 नवम्बर 1990 को प्रधानमंत्री पद की शपथ हुई।
बतौर प्रधानमंत्री संसद में जो उनका पहला भाषण था उसने तो मुझे मुरीद बना लिया। उन्होंने जो हम क्षत्रियो को चिंता है और सिर्फ क्षत्रियो को ही नही सम्पूर्ण सवर्णो को चिंता है वो है आरंक्षण।
आरंक्षण पर बोलते हुए उन्होंने कहा देश मे जो भी विकास हुवा वो नियोजित नही था। असंतुलित विकास की वजह से अनारक्षित जातियों में भी गरीबो की संख्या बेतहासा बढ़ी है, हम उन्हें नजरअंदाज नही कर सके। सभी जातियों व सभी धर्मों में लोग गरीब है हमे उनके लिये कुछ सोचना होगा।
अवधेश सिंह ने कहा कि,भारतीय राष्ट्रीय क्षत्रिय कल्याण परिषद का ये मूल विषय है।
हमे अफसोस है ऐसा राजनैतिक ब्यक्ति जो हम लोगो मे बारे में सोचता था उसका कार्यकाल सिर्फ 4 महीने का ही रहा और वो समय से पहले हम सबको अलविदा कह गया।
राजनीति में कहा मिलते है ऐसे लोग। संसद में वो अकेले ही सम्पूर्ण विपक्ष थे। मित्रो के मित्र थे। समर्थकों के संरक्षक थे। छोटे से छोटे कार्यकर्ता के दुख में वो शरीक होते थे।
आज बहुत याद आते है चंद्रशेखर जी।
अवधेश सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी गाव के ठाकुर सदानंद सिंह के पुत्र के रूप में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर गाव में ही प्राइमरी शिक्षा ग्रहण कर अंतिम शिक्षा इलाहावाद विश्वविद्यालय से एम ए राजनीति शास्त्र से उत्तीर्ण कर शोधकार्य (पीएचडी) प्रारम्भ ही किया था उसी दौरान आचार्य नरेन्द्रदेव जी के कहने पर बलिया जिले के शोसलिस्ट पार्टी के मंत्री बनकर राजनैतिक यात्रा शुरू कर दी। शोसलिस्ट पार्टी के प्रदेश के महामंत्री बने। 1962 में राज्यसभा के लिये चुने गए।
26 जून 1975 को आपातकाल लागू होने पर जयप्रकाश नारायन जी की गिरफ्तारी को लेकर इंदिरा जी से मतभेद होने पर गिरफ्तारी का विरोध करने की वजह से काग्रेस का सदस्य व राज्यसभा सदस्य होने पर भी इनकी गितफ्तारी हुई। 19 महीने जेल में रहे। जनता पार्टी बनी जिसके ये राष्ट्रीय बने।
जनता पार्टी टूटी। जनता पार्टी की सरकार गिरी।
मुझे इनपर ये पंक्तियां याद आती हैं कि-
है वही सूरमा इस युग मे,जो अपनी राह बनाता है।
कोई चलता पदचिन्हों पर, कोई पदचिह्न बनाता है।
चंद्रशेखर ने देश की अवाम से सीधे रिश्ते कायम करने हेतु कन्याकुमारी से 10 जनवरी 1983 से पदयात्रा शुरू कर 4260 किलोमीटर की भारत यात्रा 25 जून 1983 को पूरी की।
10 नवम्बर 1990 को प्रधानमंत्री पद की शपथ हुई।
बतौर प्रधानमंत्री संसद में जो उनका पहला भाषण था उसने तो मुझे मुरीद बना लिया। उन्होंने जो हम क्षत्रियो को चिंता है और सिर्फ क्षत्रियो को ही नही सम्पूर्ण सवर्णो को चिंता है वो है आरंक्षण।
आरंक्षण पर बोलते हुए उन्होंने कहा देश मे जो भी विकास हुवा वो नियोजित नही था। असंतुलित विकास की वजह से अनारक्षित जातियों में भी गरीबो की संख्या बेतहासा बढ़ी है, हम उन्हें नजरअंदाज नही कर सके। सभी जातियों व सभी धर्मों में लोग गरीब है हमे उनके लिये कुछ सोचना होगा।
अवधेश सिंह ने कहा कि,भारतीय राष्ट्रीय क्षत्रिय कल्याण परिषद का ये मूल विषय है।
हमे अफसोस है ऐसा राजनैतिक ब्यक्ति जो हम लोगो मे बारे में सोचता था उसका कार्यकाल सिर्फ 4 महीने का ही रहा और वो समय से पहले हम सबको अलविदा कह गया।
राजनीति में कहा मिलते है ऐसे लोग। संसद में वो अकेले ही सम्पूर्ण विपक्ष थे। मित्रो के मित्र थे। समर्थकों के संरक्षक थे। छोटे से छोटे कार्यकर्ता के दुख में वो शरीक होते थे।
आज बहुत याद आते है चंद्रशेखर जी।
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