3800वर्ष प्राचीन बरखंडीनाथ मन्दिर का जानिये महत्व, इतिहास व राजपरिवार का योगदान,श्रद्धालुओं की है अपार आस्था का केंद्र।

करनैलगंज/ गोंडा - स्थानीय तहसील मुख्यालय से उत्तर दिशा में करीब साढ़े तीन किमी की दूरी पर स्थित बाबा बरखंडीनाथ महादेव मंदिर पर शिवरात्रि को कांवरिया व शिवभक्त श्रद्धालु जलाभिषेक कर मनोकामना पूर्ति के लिये पूजन अर्चन करेंगे। 

आओ जानें मन्दिर की प्राचीनता,पौराणिकता व महत्व।

बाबा बरखंडीनाथ मंदिर के महंत बाबा सुनील पुरी का कहना है कि,यह मंदिर करीब 3800 वर्ष पुराना तथा पांडवकालीन है। उनका कहना है कि,वन व जंगल से आच्छादित होने के नाते यह स्थान पूर्व में वनखंडी नाम से विख्यात था जो कालांतर में प्रवर्तित होकर बरखंडीनाथ के नाम से सुबिख्यात व प्रसिद्घ हुआ। यहाँ पर घने वन में शिवजी की लाट पीपल के पेड़ की जड़ में दिखाई पड़ती थी, जिसे सर्वप्रथम कुछ चरवाहों ने देखा और उस स्थान पर जाकर चरवाहों द्वारा मूंज वगैरह की कुटाई करने से लाट की परत से रक्त बहने लगा और इस बात खबर जंगल की आग की तरह पूरे क्षेत्र में फैल गई। खबर पाकर पयागपुर के तत्कालीन राजा ने पहुँचकर शिवजी की लाट को निकलवा कर पयागपुर ले जाने का अथकप्रयास किया,लेकिन उस लाट  की गहराई का पता लगाने में असमर्थ हो गये। इसी दौरान रात्रि में उन्हें स्वप्न दिखा कि लाट को कहीं अन्यत्र ना ले जाकर बल्कि यहीं पर रहने दिया जाये,तो राजा पयागपुर द्वारा यहाँ विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया। महन्थ ने बताया कि पुराणों के अनुसार अयोध्या अस्य प्रमाणे पंच योजनम, देवाधिदेव महादेव स्थानम वनखंडी वनम। अर्थात यह मंदिर अयोध्या से 5 योजन की दूरी पर स्थित माना गया है। उन्होंने बताया किमहंत उनकी यहां 32 वीं पीढ़ी के रूप में वह भोलेनाथ बाबा की सेवा कर रहे हैं। सबसे पहले उनके पूर्वज हल्लाल बाबा द्वारा इस मंदिर की पूजा की गई थी। इतना ही नही बड़ी आश्चर्यजनक बात तो यह है कि 32 पीढ़ी से अनवरत उनके परिवार में दो ही भाई होते चले आ रहे हैं जिसमें  छोटा भाई महंत होता है तथा बड़ा गृहस्थ होता है। यह परम्परा बहुत दिनों से चली आ रही है। महन्थ ने बताया कि महाशिवरात्रि पर्व पर यहां पर दिनभर शिव भक्तों द्वारा जलाभिषेक किया जायेगा तथा रात्रि में 8:00 बजे भगवान भोलेनाथ का श्रृंगार व महाआरती होगी जिसमें तमाम भक्त शामिल रहेंगे।

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