- क्षेत्रवाद व राजनीतिक घरानों का मुद्दा बन सकता है अहम
पंकज मिश्र गोण्डा - दो राजनीतिक नदीयों की धारा टकराती थी, उफनाती थी, खूब शोर मचाती थी, फिर एक नदी शांत और एक बहती रहती थी। लेकिन दोनों अनवरत समांतर बहती रहती थी। इनमें तमाम जीव खूब मचलते थे। कभी-कभी ये नदियां एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में रास्ते व रंग रूप भी बदलती थी। लेकिन इसबार ऐसा कुछ नही हुआ।
इसबार कुछ अलग हटके हुआ। पहले कटान में खेत-खलिहान समाते थे। लेकिन इसबार नदी समा गई। अयोध्या के किनारे बहती एक विशाल सरयू नदी की जल धारा, जो दूर-दूर तक प्रवाहित है। जिसने अचानक एक नदी को काटकर जन्म दिया। उस नदी ने पूर्व से कर्नलगंज में बहती नदियों से टक्कर लेने की ठानी। इधर दो नदियों में एक नदी तो अपने पूरे वेग पर थी। समयनुसार वहीं दूसरी नदी शांत व मन्द थी। जब मन्द व शांत पड़ी नदी ने देखा कि उधर से उफनाती, हा हा कार मचाती नदी पूरे वेग से आ रही । जिसके भय से तमाम जीव जो इन्ही नदियों में पले बढ़े, इधर उधर भाग रहे हैं। तो उसने अपने अस्तित्व को ही दांव पर लगाकर दूसरी नदी में समाहित कर दिया। फिर क्या विशाल रूप लेकर नदी ने उफान भरना शुरू कर दिया। देखा जाय तो अब इधर भी नदी घाघरा बन गई । जो अब सरयू से टकराने व मुकाबला करने को तैयार है। जब बड़ी नदियों का समर होता है तो तमाम धाराएं जन्म लेती हैं और तमाम छोटी नदियां अपना अस्तिव भी खो देती हैं।
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