दांव-पेंच व दाम,सज गई प्रमुख कुर्सी की दुकान,लोकतंत्र के लिये खतरनाक है ऐसी कलंक कथा

दांव-पेंच व दाम,सज गई प्रमुख कुर्सी की दुकान,लोकतंत्र के लिये खतरनाक है ऐसी कलंक कथा
  

 गोंडा: क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी) की ये दशा पहले कभी नही देखी होगी,हां ये नही कह सकते कभी हुई न होगी। ब्लाक प्रमुख चुनाव तक इन सदस्यों की धड़पकड़ ऐसे ही होती रही है। इसके पूर्व में भी प्रमुखी के दावेदार  इनको घुमाने गोवा पकड़ ले जाते थे। और चुनाव वाले दिन वापसी होती थी। ये मामला भी प्रमुख पद के चुनाव से ही जुड़ा है। इन चुनावों में  बोली लगती है, इससे पहले जीतते ही कई डिब्बा मिठाई खा चुके हैं ये लोग जो आज  पुलिस की....  । ये कोई नई बात नही है। ये परंपरा बन चुकी है। फिलहाल इन्हें जनता ने चुना है,ऐसी पुलिसिया बर्बरता सही नही है। लेकिन कहते हैं न कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय। अब काटो,आगे आने वाले लोग भी काटेंगे। क्योंकि बदलाव और बदला दोनों संभव होता है। बताते हैं कि सपा के दिग्गज नेता के विद्यालय में इन सभी की बैठक चल रही थी। तभी सत्ता से जुड़े कुछ नेताओं को इसकी भनक लग गई। ये चुनावी तैयारी ना-गवार गुजरी।  फिर क्या सेंक दी पुलिस में।  पुलिस आई,बस से इन सभी को लाद नगर कोतवाली गोंडा ले आई। फिर आगे का नजारा देख ही रहें हैं। पुलिस शायद ये भूल गई है कि वह किसी सत्ता की गुलाम  नही, जनता की  है। ये जो चुन के आये हैं जनता के प्रतिनिधि हैं। पुलिस का रुख सत्ता के मौसम के हिसाब  चलता है,ये जग जाहिर है,और किसी से छुपा नही है। खैर चुनाव में ऐसे होता रहेग जब तक जनता से सीधे प्रमुख के चुनाव नही होंगे। यही हाल जिला पंचायत अध्यक्ष का है। चुनाव आयोग को ऐसा नही है कि इन सभी मामलों की जानकारी न हो। देर सवेर बदलाव का निर्णय लेना ही पड़ेगा।
      
    बीजेपी:   सत्ताधारी  के नेताओं की माने तो ये सभी बीडीसी बंधक थे।

    सपा :  विपक्ष कहती है कि चुनाव को लेकर पार्टी की बैठक चल रही थी। पुलिस ने आकर तांडव मचाना शुरू कर दिया।

पुलिस: 25 बीडीसी  रुपईडीह के बंधक थे,जिन्हें मुक्त कराकर, बा-इज्जत सभी को घर भिजवा दिया गया है।

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