गोंडा-गुरुवार को जिला महिला अस्पताल के हौसला ट्रेनिंग सेंटर में किशोर स्वास्थ्य परामर्शदाताओं के सेल्फ-एफीकेसी (स्व-कौशल) मॉड्यूल पर एक दिवसीय प्रशिक्षण एवं अभिमुखीकरण कार्यशाला का आयोजन ममता हेल्थ इंस्टीट्यूट फॉर मदर ऐंड चाइल्ड के सहयोग से किया गया, जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के जिला नोडल अधिकारी एसीएमओ आरसीएच डॉ एपी सिंह ने की |
कार्यशाला को संबोधित करते हुए डॉ सिंह ने बताया कि कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य सेल्फ-एफीकेसी (स्व-कौशल) पर कार्यकर्ताओं की समझ बनाना है, जिससे वे युवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर नियंत्रण करने के लिए उन्हें तैयार कर सकें | किशोरों में जेंडर भूमिका उनके स्व-कौशल को सीमित करती है और उनके आकांक्षाओं पर भी विराम लगा देती है |
इस मॉड्यूल के प्रशिक्षण से कार्यकर्ताओं के ज्ञान, कौशल एवं गुणवत्तापरक परामर्श में मदद मिलेगी |
प्रशिक्षक गुलाम हसन और नीरज श्रीवास्तव ने बताया स्व-कौशल किशोरों के जीवन में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है | हमें किशोर-किशोरियों के मार्गदर्शक या सलाहकार के रूप में यह समझने की जरूरत है कि एक व्यक्ति के जीवन में स्व-कौशल कैसे काम करता है | उच्च स्व-कौशल वाले किशोर प्रदर्शन के मामले में कमजोर स्तर वाले किशोरों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं, जैसे कि शिक्षा में | यदि इसे विज्ञान के रूप में समझा जाए, तो उनकी बौद्धिक तार्किक क्षमता में काफी सुधार किया जा सकता है |
राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के जिला सलाहकार रंजीत सिंह राठौर ने कहा कि स्व-कौशल प्रेरणा को प्रभावित करती है और इसलिए किशोर स्वास्थ्य परामर्शदाताओं को समझना चाहिए कि किस प्रकार किशोरों में इसका विकास किया जाए और इन सिद्धांतों को उनके दैनिक कार्यों में शामिल किया जाए | स्व-कौशल हमारे जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगी | एक सलाहकार के रूप में हम राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के सभी घटकों पर किशोर-किशोरियों को उचित जानकारी दे पायें |
लिंग एवं जेंडर भेदभाव पर चर्चा के दौरान प्रशिक्षकों ने बताया कि स्व-कौशल से समाज में व्याप्त मिथक जैसे- लड़कियों का जन्म गृह निर्माता बनने के लिए होता है, परिवार की देखभाल के लिए लड़कियों को वृद्धि करनी चाहिए, लड़कियां सुन्दर होनी चाहिए तथा लड़कों को शक्तिशाली बनना चाहिए, लड़कों को परिवार का मुखिया होना चाहिए, अधिकतर वैज्ञानिक पुरुष हैं, पुरुष यह निर्णय लेते हैं कि उन्हें कितने बच्चे चाहिए आदि पक्षपाती अवधारणाओं पर किशोर-किशोरियों के साथ चर्चा कर उनमें समझ विकसित करने में मदद मिलेगी | इससे आपेक्षित परिणाम प्राप्त हो सकेंगे | इस दौरान ममता हेल्थ इंस्टीट्यूट फॉर मदर ऐंड चाइल्ड के कार्यक्रम प्रबंधक अखिलेश शुक्ला, सुरेश मिश्र सहित अन्य परामर्शदाताओं ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किये |
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